पहिलइ पोहरे रैणकै, दिवला अंबर डूल।

धण कसतूरी हुइ रही, प्रिव चंपारौ फूल॥

दूजै पोहरे रयणकै मिळियत गुफ्फागुध्ध।

धण पाळा, पिव पाखस्यौ, बिहूँ भला भड़ जुध्ध॥

त्रीजै प्रहरै रैणकै मिळिया तेहा-तेह।

धण नहि धरती हुइ रही, कंत सुहावौ मेह॥

चौथे प्रहरै रैणकै कूकड़ मेल्ही राळि।

धण संभाळे कंचुवौ, प्री मूँछाँरा बाळि॥

पँचमै प्रहरै दीहरै सायधण दियै बुहारि।

रिमझिम रिमझिम हुइ रही, हुइ धण-त्री जौहरि॥

छट्ठै प्रहरै दिवसकै हुई जीमणवार।

मन चावळ, तन लापसी, नैण घी की धार॥

सत्तम प्रहरै दिवस कै धण जू वाडियाँ जाइ।

आँणै द्राख-विजोरियाँ, धण छोलइ, प्रिउ खाइ॥

आठम प्रहर संझा समै धण ठव्वै सिणगार।

पान कजळ पाखर करै, फूलांकौ गळि हार॥

प्रहरै-प्रहर ऊतरयुँ, दिवला साख भरेह।

धण जीती, प्रिव हारियउ, वेल्हा मिलण करेह॥

स्रोत
  • पोथी : ढोला मारू रा दूहा ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : रामसिंह, सूर्यकरण पारीक, नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
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