लांब-लांबा केस दिखै है, बिछिया ऊपर धरतड़ली।

फूल बनी रौ बनड़ौ सूतौ, मीठी लेतौ नींदडली॥

रूप डळां री गजवण ऊभी, गंठ गंठीली गोरडली।

नख लाग्यां सूं लोही झलके, गोरी-गोरी चामड़ली॥

काळी लटां बटां खायौड़ी, पूगी कांमण ठोडडली।

गाला माथै भंवरा गुड़कै, मधरी चाल्यां पूनड़ली॥

उभरयौ हिवड़ौ ऊंचौ दीसै दिखै कबूतर चांचड़ली।

सरवर तिरता हंस दिखै हैं, ठम-ठम चाल्यां गोरडली॥

तीन सळा री पेड़यां दीसै, पेडू ऊपर कांमणली।

रूवां डांडी बणी दिखै है, सूंड़ी ऊपर गोरड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम