लहरै रैंण रंगाणा केस,

जिण में लुकी रूप री राग।

काजळिया कंवळां तणौ पराग,

बनी रै थिर जोबन रो थाग।

अर्थ :

(संध्या सुंदरी की) निशावर्णी (रात्रि के रंग की अर्थात अंधेरे जैसी श्याम) केश राशि लहरा रही है जिसमें सौन्दर्य का (नीरव) संगीत छुपा हुआ है। (ऐसा प्रतीत होता है मानो ये अलकावलि) नील कमलों के (सुरभित) पराग की ही राशि हो और (संध्या रूपी) दुलहन के यौवन की अक्षयता की थाह बता रही हो।

स्रोत
  • पोथी : सांझ ,
  • सिरजक : नारायणसिंह भाटी ,
  • संपादक : गणपति चन्द्र भंडारी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान पाठ्य प्रकाशन जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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