हँसै किण बनड़ी तणौ सुहाग?

बादळी झीणी घूंघट ओट।

बीखरै डाबर नैणां लाज,

चमक्कै चोखी कोरां गोट।

अर्थ :

विरल मेघों के झीने घूंघट की ओट में किस दुलहन का सुहाग हँस रहा है? (उस दुलहन की) छोटी तलैया जैसी (सुन्दर सजल) आँखों से लज्जा बिखर रही है। (उसकी ओढ़नी पर लगी) सुंदर गोटे की किनारी चमक रही है।

स्रोत
  • पोथी : सांझ ,
  • सिरजक : नारायणसिंह भाटी ,
  • संपादक : गणपति चन्द्र भंडारी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान पाठ्य प्रकाशन जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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