रात बिरातां खेत रुखाळै, बेठ्यौ ऊपर टीबड़ली।
हिरण्यां- किरत्यां दिखै गगन में, टेम देखले आं॥
कैर सांगरी साग मोकळी, दिखे तोड़ती गोरड़ली।
विखरयां खोखा बकरी चरले, ऊभी नीचै खेजड़ली॥
ठमकी मारयां ठमठम बोले, पाकी दीसे आलड़लो।
गुंढ खिरोड़ौ पड़यौ मतीरौ, तांतूं बळियां बेलड़ली॥
गोधलियौ खेतां मै बड़जा, गबरू पकड़े पूंछडली।
दै फटकारौ हेठे न्हाखे दिखै चाटती रेतड़ली॥
हरियै - हरियै खेतां दीसै, बाजर ऊंची सीटड़ली।
काचर घणा टींडसी दीसे, फळ्यां भरोड़ी मोठड़ली॥
आसोजा मै मोती निपजै बादळ नाख्यां छांटड़ली।
हरियाळी खेतां मै दीसै, धान हुवेलौ धाकड़ली॥