भयो निरवेद भूप अचक्षू विपिन गौन,

पृथा सासु स्वसुर सुसेवा काज कियो साथ।

युधिष्ठिर पिताभक्ति पूर्व अदभूत कीनी,

तीजै अब्द भेटिबे कौं गयो लिये राज साथ।

क्षता परलोक व्यास कृपा सबै क्षोहनी के,

मारे बीर मिले जातैं सारे ही भये सनाथ।

दो तैं पृथा युक्त बिना संजय सुन्यो है दाह,

नारद तैं पूछ्यो है विलापि कै सु जोरी हाथ॥

स्रोत
  • पोथी : पाण्डव यशेन्दु चन्द्रिका ,
  • सिरजक : स्वामी स्वरूपदास देथा ,
  • संपादक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली।