थे देखी होसी जांवती कदी?

कठी नै गई,

बा लारली सदी!

जाबक डोकरी,

उमर ली पूरी सौ साल!

घणा झेल्या बापड़ी,

जुद्ध अर काळ।

अखीर चली गई

रोती-धोती, कळपती,

हथियारां सूं लदी।

बा लारली सदी।

कीं करिस्मा

ग्यान-विग्यान रा

कीं खारी-मीठी याद,

कीं तोड़गी, कीं जोड़गी,

कीं फरमागी, कीं फरियाद

करगी, लारै छोडगी

कीं नेकी, कीं बदी!

बा लारली सदी!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी