द्रोणी अभिषेचन उलूक उपदेश निशा,

खड्ग ही तैं द्रौंपदी के भ्राता पुत्र मारे हैं।

अठारों हजार शस्त्र अस्त्र ही तैं नाश कीनो,

पांचौ बंधु सेना बाह्य केशव उगारे हैं।

द्रौपदी-विलाप सुनि प्रात नर कीनो नेम,

शत्रु को रु आपको द्वै ब्रह्म अस्त्र टारे हैं।

बांधि लाये शिखा छेदि विप्र जानि छांडि दियो,

उत्तरा को गर्भ राख्यो कृष्ण काज सारे हैं॥

स्रोत
  • पोथी : पाण्डव यशेन्दु चन्द्रिका ,
  • सिरजक : स्वामी स्वरूपदास देथा ,
  • संपादक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : तृतीय