राजधर्म-दानधर्म-आपत्ति कह्यो है धर्म,
मोक्ष को जो धर्म शरशय्या के शयन में।
और हू अनेक इतिहास दोनों पर्वन में,
पांच रत्न गीता बिन भीष्म-मोक्ष इन में।
युधिष्ठिर भ्राता-पुत्र-पितामह-गुरु-विप्र,
इनको विनाश देखि ताप घोर तन में।
कृष्ण उपदेश तैं ना व्यास-उपदेश तैं ना,
भीष्म उपदेश ही तैं शीतल भो मन में॥