सतगुरु कृपा निधान, ग्यान बिग्यान बिचारण।

जत सत सील संतोष, धारणा ढिढता धारण।

गही टेक निज नाम, कदे नहीं ममता डिगाया।

लीना तन मन जीत, सांच सतगुरु सूं पाया।

जत्त मत्त हरि भगति बिनि, छाड्या सकल असार।

राम नाम निज तत गह्या, सब धरमां का सार॥

स्रोत
  • पोथी : श्री रामस्नेही - संदेश संत सप्तक (मुक्तिविलास कृति से) ,
  • सिरजक : रूपदास जी ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : श्री रामस्नेही- युवा -संत परिषद्, रामनिवास धाम, शाहपुरा ( भीलवाड़ा) ,
  • संस्करण : प्रथम