संचित सूं कर्म धर्म आवत उद्योत होत,

मनुष्य जनम पाय आय सतसंग में।

सुमति सु प्यार कर यति यति वार नर,

व्यसन विडार सब राम रसु रंग में।

सज्जन सु सेवित ही सत्य गुरु सेव देव,

भाव सु भजन मन आठों याम अंग में।

रस यशोनाथ कहे शिष्य सुन सुबुद्धि से,

सत्य सु संगति रति राखत सु ढंग में॥

स्रोत
  • पोथी : जसनाथी संप्रदाय : साहित्य, साधना एवं विचारधारा (पीएचडी उपाधि हेतु स्वीकृत शोध प्रबंध) ,
  • सिरजक : जसनाथ जी ,
  • संपादक : भेराराम