सुणै पंणै समवाद, नंद नंदन अहिनारी।
समंद्रां पार संसार, होहि गोपद अंणुहारी।
अनंत अनंत आनंद, सबै वपु तास समावै।
भुगति जुगति भंडार, किसन मुगताज कहावै।
रम्यौ नृत्य राधा-रमण, दुहुभुज करि काळीदमण।
ते चवंण-सुणंण अहि रावतणां, मटण काज आवागमण॥1
नंदनंदन श्रीकृष्ण और नागिनियों का यह सम्वाद(वर्णनग्रंथ) जो सुनेगा, कहेगा वह भव रूपी समुद्र को गोपद के समान तर कर पार हो जाएगा तथा उसके शरीर में अनन्तानन्द का समावेश होगा। भक्ति, युक्ति एवं मुक्ति के भंडार श्रीकृष्ण अज कहलाते हैं, उन्हीं राधारमण ने अपनी दोनों भुजाओं द्वारा कालिय-दमण नृत्य किया। उसी नृत्य को आवागमन मिटाने के लिए कहना तथा सुनना चाहिए।