नारद ने देवन की सभा बहुधा सी कही,
पांडु को संदेश पुनि राजसूय करिबो।
चारौं दिगविजै चारौं भ्रातन तैं मागध को,
भीम तैं विनाश शिशुपाल हू को मरिबो।
सभा बीच व्हैबो अपमान त्यों सुयोधन को,
मत्सरता लिये पितु-मातुल तैं लरिबो।
रच्यो द्यूत खेंच्यो चीर स्वसुर ने दीनो वर,
फेर द्यूत तेरा अब्द बन में विचरिबो॥