जलम रा रांमतिया मत तोड़, राम चितरांम बिगड़ जासी

अधूरा सपना मती मरोड़, प्रीत री बेल उखड़ जासी।

मिनख जमारौ घणी भांत रौ, धण रंगां रौ घणौ सांतरौ,

रांमतिया सगळां नै चोखा, आठां-साठां नहीं आंतरौ

आस री आगळ नै दे खोल, सांस रौ साथ सुधर जासी।

निरख-परखलै चूंघट नगरी, जी-भर पीलै पिणघट गगरी,

मत घबरा मत कळपा काया, याद करै ना मरघट डगरी

चूनड़ रौ गोटौ मती उधेड़, कफन रा तार उधड़ जासी।

दरपण देखण री रुत आई, तन री पोळ बसंती आई,

पवन करै है पाप, सांस ना करै कदै मन सूं अधकाई

बावळी कूपळियौ मत फोड़, नैण पर धूंधळ छा जासी।

मिंदर में दीखै ब्रिज होळी, ग्रंथां रै लिपटी है मोळी,

तांडव री निरतन थिरकण सूं, कैलासां पर भटकै भोळी

धरम री छाया नै मत देख, तपण री राख उघड़ जासी।

सांझ रा सांवट मती बिछाय, रात नै बातां में बिलमाय,

पूनम रौ चांद नहीं बूढौ, प्रीत री पलकां बीच बसाय

फूल री पांखड़ियां मत तोड़, कळी री कूं उजड़ जासी।

पगां करै मत भेळी दळदळ, गांठ करै मत हाथां बोझळ,

आज राज कर ताज धारले, आगोतर आंखड़ल्यां ओझळ,

मौत रौ मारग मती बुहार, मानवी मांन बिखर जासी

अधूरा सपना मती मरोड़, प्रीत री बेल उखड़ जासी।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच राजस्थानी भासा अर साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा