रजनी माह की सरसात।

नाह बदेस बेस कब सजनी मो पर रह्यो जात।

देव-देव भूषन तन दाहत भेद कहत बनात।

परम भागवत बंधु बंधु प्रिये नहिं नैनन नियरात।

मो तन आंच नहीं चाहत सखी अंगीठी रात।

छीरसमंद-तनयापति बाहन ता म्रगमद अतर अंग सुहात।

तेग तीर सम लागत तीछन बहत त्रिबिधि गत बात।

अचला चरन हार चर बोल तब हियरा सियरात।

बिन देखै सिरदार कान्ह छबि तिन सरीर पियरात॥

स्रोत
  • पोथी : सुर-तरंग ,
  • सिरजक : सरदार सिंह ,
  • संपादक : डी.बी. क्षीरसागर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम