वैननेय वानर विधाता और वासव जे,
हर्द हरताल रंग हाटक सुहायो सो।
चक्रवाक चंपक है चपला चमेली सोन,
गोरोचन गायमूत्र द्वापर बतायो सो।
पीतर पराग मेरू गंधक कमल-कोश,
केशर को रंग सो कविसुरन गायो सो।
वासुदेव पीत वास कंस काज कटी कस्यो,
इन तैं विशेष सुन्यो वीररस छायो सो॥