प्रणमवि जिणवर पाउ, तु गड त्रिहु भवन नुए।

समरवि सरसति देव तु सेवा सुरनर करिए।।

गाइसु आदि जिणद आणंद अति उपजिए।

कौशल देस मंझार तु सुसार गुण आगलुए।

नाभि नरिंद सुरिंद जिसु, सुरपुर वराए।

मुरा देवी नाम अरधंगि सुरगि रंभा जिसी ए।

राउ राणी सुख सेजि सुहेजाइ नितु रमिए।

इन्द्र आदेस सुवेस आवीस सुर किन्यकाए।

केवि सिर छत्र धरति करति केवि धूपणाए।

केवि उगट केइ अंगि सुचगि पूजा धणिए।

केवि अमर बहू भगि आभगीय आणवहिए।

केवि सयन अनि आसन भोजन विधि करिए।

केवि खड़ग धरी हाथि सो सावइ नितु फरिए।।

मुरा देवि भगति चिगाजि सुलाज मनि धरिए।

जू जूया करि सवि वेषु तु, मामन परिहरिए।

गरभ सोधकरि भाव तु गाइ सुब जिन तणाए।

वरसि अहूठए कोडि कर जोड़ि सो व्रण तणीए।

दिव दिन नाभि निवार सो वारि वा दुख घणीए।

एक दिवस मुरा देवी सो सेवीय जक्षणीए।

पुढ़ीय सेजि समाधि सु अधिकोइ आसणीए।

स्रोत
  • पोथी : रिखभनाथ री धूलि ,
  • सिरजक : आचार्य सोमकीर्ति ,
  • प्रकाशक : दिगम्बर जैन मंदिर, बघेरवाल-नैणवा
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