पहर चढ़याँ उठ्ठै थोडा अंलसावै खटिया पै,

उठताँ ही चाय फेर सुट्ट सिगरेट की।

निबटता निबटाता दस ग्यारह बज जावै

जावै भाग-भूग'र काम पर डाँट सुणै मेठ की।

होवै जो मजूरी पकी काम करै कौड़ी को

जो नौकरी हो काची माँगै माफी कछु लेट की।

स्वारथ लेखे खोई लाज बोई मरजादा

अेक याद रहगी बस आज आग पेट की॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1982 ,
  • सिरजक : गौरीशंकर शर्मा ‘कमलेश’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा साहित्य संगम अकादमी बीकानेर
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