जाकै घर ताजी तुरकीन कौ तबेला बंध्यौ।
ताकैं आगै फेरि फेरि टटुवा नखाइये।
जाकै खासा मलमल सिरी साफ ढेर परे।
ताकै आगै आंनि करि चौसई रखाइये।
जाकौं पंचामृत खात खात सब दिन बीते।
सुंदर कहत ताहि राबरी चखाइये।
चतुर प्रवीन आगै मूरख उचारि करै।
सूरज कै आगै जैसे जैंगणां दिखाइये॥