नारनोल भर निडर देद जुध कीनो दारुण।

सुत मदेद सो हुव कीसन लड़ियो पति कारण।

जगपथ हरनाथोत कीयो समहर वीकाणै।

म्यारम सुत मेड़तै जुड़ै किसनो जग जाणै।

मल जठ रतनगढ चूरू पुनः परब पेम हद पाविया।

बीकाण चाड अेता सिवड़ अडी खांगां आविया॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता- सिंढायच दयालदास ,
  • सिरजक : दयालदास सिंढायच ,
  • संपादक : गिरिजाशंकर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम