गरल तैं भीम कौं त्यों ज्वाल हूं तैं पांच हू कौं,
द्रौपती कौं सभा औ विराट वन तीन बार।
किरीटी कौं अच्छर के श्राप तैं युद्धिष्ठिर कौं,
मारिबे कौं मरिबे पै उदै भये असीधार।
दुरसावा श्रापिबें कौं आयो ताकौं आदि दैके,
श्रुपदास केते कहै एक छंद में प्रकार।
तेइ मेरे ग्रंथ आदि मंगल उदय करो,
एते ठां अमंगल कौं मंगल करनहार॥