मद जल झंकृत मधुप, लसत गज मुख सुखमा मय।
सिंदूरार्चित अरुण शीर्ष चंचित चन्द्रोदय।
वक्रदंत इक विमल वसन, तन अरुण विराजत।
फरस पानि सत गुन निधान निधि थान अमल चित।
सुरवृंद अग्रवर्ती सुघर जगत विघन हर सुजस जय।
जति नाथ कीर्त्ति महिमा जपह तन्नमामि गौरी तनय॥