तन (अभिरांम) गोर वसन लसत स्याम,

सुमन सुगंध वारी छरी कर छाजहीं।

बड़े गज मोति की माल सोभ देत हीय,

भयो हरकंठ तैं विलोकि दुख भाजही।

कहै सिरदार सरि पि धन्य है,

सुर खरिज सदन जाति संपूरन वानही।

ससिर निसा मै जाम चौथे गाईयतू

केलि करत तीयान संग मालकौंस राजहो॥

स्रोत
  • पोथी : सुर-तरंग ,
  • सिरजक : सरदार सिंह ,
  • संपादक : डी.बी. क्षीरसागर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम