कुबुद्धि कहे कृष्ण, आनदेव भूत आराधै।

हरि हीरो परहरै, विषय खल गाँठि सूं बांधै।

मारग धरम दियो मेल्हि, अधर्म ऊझड़ बहै अंधा।

भजन ज्ञान गयो भूलि, ध्यान धन एको धंधा।

नारायण नाम जे लैं नहीं, फूटि चखि यों ही फिरै।

डूबसी भवसागर बिचै, तिके किस विधि सों तिरै।

अन्न बिन तन तो ही रहे, जो लहैं भुयंगम भेद।

नारायण पूरण हुवे, मन की आश उम्मेद।

पूरो गुरु जो पाइये, पूरो दे उपदेश।

नारायण दुख समंद ते, काढै कर गहि केश॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान का संत-साहित्य ,
  • सिरजक : नारायण दूधाधारी ,
  • संपादक : वसुमती शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय