कली काक कोकिल कच कीच काच केकी क्रोध,
करि काली कृत्या कोल कज्जल कलंक मानि।
कृष्ण काम कलह कुसंग कालकूट सुरा,
कुजस करवाल तम पाप पुंज लौं बखानि।
विंध्याचल तालवृक्ष व्यास बन व्याल व्योम,
द्रौपदी जलद जांबू जमना अनृत बानि।
मृगमद शंगार रस निर्य नील तेल हू तैं,
कारे हैं अधिक हरि-विमुखों के व्हदै जानि॥