कोंन काल बसि पर्यौ, काल ग्रह कोन बंध्यो।

कोंन काल जित्तयो, काल किहि खाइ रुंध्यो।

मठ बिहार वापीन, बिरख सुर थावर जंगम।

सुबर राज राजिंद, कौं दिख्खौ अभंगम।

ज्यां बंध्यौ साहि गोरी सुबर, मरन तिनं कति नंतयौ।

इंछनिय इच्छ इच्छा सुफल, सुबर बीर बीरह जयौ॥

स्रोत
  • पोथी : पृथ्वीराज रासो ,
  • सिरजक : चंद बरदाई ,
  • संपादक : श्रीकृष्ण शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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