केल रित सारी कह देत मरग जी सारी,
जतारी कंचुकी तनी ते जान पाए हैं।
पाइ को म्हाउर म्हाउर प्रभास प्रीत,
लाल गुही वेनी वाल छप्पे न छिपाई हो।
कहै सिरदार कीन्हो बिपन बिहार भारी,
गिरधारी संग अंग अंग छबि छाई हो।
बातन उडावती हो भृकुटी चढाइ अब,
फूल की ये फूल लीये कुंजन ते आई हो॥