भाव कहैं प्रेम तैं चलैंगे नित भीम द्वार,
प्राण कहै पाहनूं है पास ही रह्यो करै।
पांणि कहै परसैं नित भूपति भुजान दांन,
नैंन कहैं नित्य विधू दरसन लह्यौ करैं।
संकर सुजान यौ जुवांन कहै गाँन करैं,
कुटंवी कुवेश ल्याव ल्याव ही सह्यौ करैं।
याही तै अरजी कर गरजी गुजारत हौं,
कौन कूं जुवाव नांथ कौन को कह्यौ करैं॥
पेट कहै पापी यों उद्यापि कर वार वार,
देह को करार यही पोखे बिन थटकै।
लाज कहै ल्याव कछु दृव्य को उपाव ठांन,
नांतर छिन येक में चनोती देर सटकै।
पद कर वांनी ये निसानी जांन सतगुर की,
संकर जासु करनी ताके चरन आन अटकै।
मन कहैं मानै कौन कभऊँ करौंना गौंन,
भींव भुवन त्यागि कै, वलाय मेरी भटकै॥