कस्यो यो जमानो देखो, लेखो कुण आँकै ईं को,

दीखै नसाबाज सभी कुअै घुली भंग सी।

भूख उकलाब अर लालस्या की बाढ़ बीच

कांपती मनखाई डरी डरी ऊभी नंग सी।

प्रेम अर थरथा को बिरथा छ: हिराणो अब,

आँधी का जोर मं वै डूबगी तरं सी।

कहवै कमलेस या चादर जिन्दग्यानी की

औढी, अधओढ़ी, ओढी ओछी बदरंग सी॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1982 ,
  • सिरजक : गौरीशंकर शर्मा ‘कमलेश’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा साहित्य संगम अकादमी बीकानेर
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