कस्यो यो जमानो देखो, लेखो कुण आँकै ईं को,
दीखै नसाबाज सभी कुअै घुली भंग सी।
भूख उकलाब अर लालस्या की बाढ़ बीच
कांपती मनखाई डरी डरी ऊभी नंग सी।
प्रेम अर थरथा को बिरथा छ: हिराणो अब,
आँधी का जोर मं वै डूबगी तरं सी।
कहवै कमलेस या चादर जिन्दग्यानी की
औढी, अधओढ़ी, ओढी ओछी बदरंग सी॥