ज्यौं ज्यौं इत देखियत मूरख विमुख लोग
त्यौं त्यौं ब्रजवासी सुखरासी मन भावै हैं।
खारे जल छीलर दुखारे आध कूप चितै
कालिन्दी कूल काज मन ललचावै हैं॥
जेती इहे बीतत सो कहत न बनत बैन
नागर न चैन परै प्राण अकुलावै हैं।
थूहर, पलास, देख-देख के बबूल बुरे
हाय हरे हरे वे कदम्ब सुध आवे हैं॥