जैसे बांझ कामिनी सूं पुरुष करत संग,
बालक न होइ जापै बाही मांझ दोष है।
जैसे कोऊ ऊसर में फेरि फेरि बाहै बीज,
निपजै न खेत तौ करसान सूं न रोष है।
जैसे नीव नागर को बार-बार सींचै दूध,
ऐसे सठ सूरो तांकौ सबद को पोष है।
तैसे एक खेचर कै कारन रहै न ज्ञान,
कहत बालकराम ताको नहीं मोष है॥