ईश्वर की सृष्टि सदा सुख दाई सदा ज्ञान पाई,

राग द्वेष हर्ष शोक द्वन्द्वनि तै न्यारे है।

जीव की तौ सृष्टि दुख दाई है अनेक भांति,

मेरौ तन मेरौ धन मन मांझ प्यारे हैं।

जैसे येक बन विपै रूंख रोकि वाडि करै,

दातुण जो तौरै कोउ कहै मेरे सारे है।

कहत बालकराम ममता तै दुख पावै,

ममता के छाडै जीव मुगति सिधारे है॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : बालकराम ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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