(अेक)
सुर में सहायी वरदायी मात शारदे,
दुर्जन दमन रूप देवी रौद्र धारती।
सेवक सज्जन सब सेवे तोहे सुखकारी,
अंबे की करत सब देव नित आरती॥
भंजन भूतल भार तार निज भक्तजन।
भीषण प्रहार से बचाती तुंही भारती,
शरण तिहारी सदा राखिजे शम्भु की प्यारी।
काहे तूं ना कष्ट कुलदीप का विडारती॥
(दो)
मेहा जी रा बड़भाग, जन्म घर करणी पायो।
धिन हो गांव सुवाप, रिधु जठे रास रचायो॥
देशाणों निज धाम, जगत में मात सवायो।
रिड़मल दिन्हों राज, जांगलधर नाम पुजायो॥
परचा अपरम्पार, पार तव कोई न पायो।
कर बीका री साय, बीकपुर मात बसायो॥
(तीन)
मामड़ सुता विख्यात धरा माढ़ में,
करणी सहाई नित गढ़ बिकाण की।
अंबा इंद खुड़द बिराजे सुखदाई और,
गांव इंन्दोखे विख्यात है गिगाई जी॥
सेवक विडारे दुःख समपे सगति सुख,
मुख से रटूं सदा ही टेर जग माय की॥