घन की घटा सी चढ़ी धूर सैन पायन की,
दामिनी झमक छबि तामैं बरछान कै।
पीठ गजराजहिं निसान फहरान पीत,
बिवधे मणिन दण्ड इन्दु धनुबान कै।
धाय रवि छादित आराम मग छाँह चलै,
प्रेम के विनोदी राय रंग सरसान कै।
जानहु सुजान भान कुल के बड़े के कान,
छायो मानो रंज को बितान आसमान के॥