गावत सुनत राग रागिनी सुताल तान,
अहनिस होत राग गंधव रूप मान।
के पुनि बिराजी सुरन समीप सुध,
नारद रु तुंवर के मुष की सुनहिं तान।
इंद्र के सभासद के होत सखा संकर के,
जक्षपति मित्र व्है पवित्र भोग अछरांन।
हरिहर आतम के पद जे सुनहि गावै,
कहै सिरदार ते लहत दिव्य नर बांन॥
पंचम सुबेद पंच आनन प्रगट कीन्हो,
लीन्हो धारि नारदादि ग्यांनी जे सुचेत हैं।
पिघलत पाहनहू सुनि सुनि जाकी धुनि,
व्यालहु पताल तें निकसि कान देत हैं।
आछे द्रिग वारे म्रग बासी जे (ऊजारि) कैते,
तान सुनि देत तन छाड़ तन खेत है।
धन्य हैं ते सिरदार कहे सिरदारसिंह,
ऐसी चीज राग जासों राखे जे न हेत है॥