छप्पन की साल काल कीनी कुचाल,

चाल वेहाल प्रजा की येक माल कीन तंगी है।

पसीन की बूँद मंद कंदन सुकाय दिये,

पशु ओर जिनावर को कोंन संगी है।

ऐसे हूँ कहर पै मिहर (महान) कीन,

नींवागढ नांथ की अनौठी वात चंगी है।

देश विदेशन के नौवति नरेश कहैं,

भूप जनकेश तौरी कीरति किलंगी है॥

छप्पन की साल मैं उथप्पन की मारवार,

ढूँढी ढूँढार मेवार मालपंगी है।

गुजरी गुजरात काठवार पार पूरवलौं,

काशी कलकत्ता काश्मीर कीन तंगी है।

शंकर सुजान आंन हद्द हिन्दुवांन बीच,

महीप चहुवांन नै प्रजा की पाल चंगी है।

देश विदेशन के नोबति नरेश कहैं,

भूप जनकेश तौरी कीरति किलंगी है॥

स्रोत
  • पोथी : भीम विलास ,
  • सिरजक : शंकर राव ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : लोकभाषा प्रकाशन, कोटपूतली,जयपुर।
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