सुघर सुपुत्र मातृभूमि को लखात श्रेष्ठ,
प्रजावर्ग जू को बन्धु सुहृदय नितान्त भ्राज।
कुटिल कपूतन को प्रबल मदान्ध भीम,
तुरक परिन्दन को भासत शिकारी बाज।
राम कढ़ि रह्यो मारवार कगो मनहु बली,
चलित भयो है क्षात्रधर्म को किंधौ जहाज।
शत्रु कहँ कारो नाग मित्रन को भूरो बाध,
वीर दुर्गदास बहुरूपिया दिखावे आज॥
सुहृदय संबन्धिन सों बार बार जै जै मात,
मेरे प्रित आपको सनेह अभिराम है।
निन्दक महान उन लोकन सों नमस्कार,
पीठ पीछे रावरो सदैव इहिं काम है।
रहि्यो नितान्त सकुटुम्ब तुम लोग सुखी,
सबैं देशवासिन सों गाढे राम राम है।
राजा को निकार्यो कर जोर दुर्गदास कहै,
मारवाड़ तो सों आज अंतिम प्रणाम है॥