लाख लाख कष्ट सहि, पूर्ण जिन्दगानी भर,
देश के निमित राख दर-दर छानी मैं।
राजन की जात और आग को भरोसो कहा?
आज यह सत्य बात पूरण प्रमानी मैं।
आधी मारवार देन लागो अवरंग पर,
सेवा देश स्वामि की नितान्त मुख्य मानी मैं।
त्यागनी परेगी जन्मभूमि वृद्धकाल महँ,
कबहू त्रिकाल महँ ऐसी नहीं जानी मैं॥
कीकर करीर बदरीन कहँ कल्पबृक्ष,
कृषक-समाज देवतान सम जान्यो मैं।
टीबे अरु धोरे थोथे थल के उड़त रेत,
काशमीर मुलक समान पहिचान्यो मैं।
लूंनी देवनदी खारे सांभर को क्षीरसिंधु,
समीफल भुर्ट पकवान कर मान्यो मैं।
ग्रंथन में गायो मृतलोकन को देश पर,
मरू को सदैव सुरलोक ही प्रमान्यो मैं॥
जाही मारवाड़ हेत संकट हेत अनेक सहे,
एक करि दीने जाने रसातल आसमान।
जाही मारवाड़ हेतु दुरगे बहायो रक्त,
करि-करि केते ठौर-ठौर युद्ध घमासान।
जाने उक्त मारवार हेत निसि द्यौस बीच,
म्यान में न डारी नेक वीर ने कबू कृपान।
वाही मारवार निजदेश दुरगेश आज,
छोरि दीनी निपट विदेशी बटाउ जान॥
शत्रुन को तेग तें निकारे कर्मबीर जिहीं,
मारवार जू की करनोत गहि राखी लाज।
दारिद निकारयो धन्वधरा को निपट जिहीं,
राष्ट्रवर भूप को जमायो बलवान राज।
फूटहू निकारी बहु सुभट कबन्धन की,
स्वामी उत्तमांग पर पीछो धर दीनो ताज।
करिके कृतघ्नता अजीत मरुनाथ ओहि,
जाही दुर्गदास कहँ देश तें निकारयो आज॥