(1)

चार धाम-तीर्थ थकी, हजारों गौ-दान थकी, 
व्रत-उपवास-थकी, मोटु देश मान है। 
पूजा-पाठ- होम थकी, गीताजी ना पाठ थकी, 
गंगाजी ना घाट थकी, वर्ती अेनी शान है। 
राम-नाम-जप थकी, धर्म-ज्ञान-तप थकी, 
धरम ने ध्यान थकी, वर्तुं गुणवान है। 
भजन ने भाव थकी, प्रभु ना प्रताप थकी, 
हरग ना वास थकी, वालु हिन्दुस्तान है।

(2)

घणु-घणु वालु प्यारु, ताजु ने रुडु-रुपारु,
हरयू भरयू  देश मारु, आँकँ जेवु प्यारु है। 
हिवड़ा ना हार जेवु, जीवन ना तार जेवु, 
सुख ना सागर जेवु, ताजु सब हाल है। 
भूका ने भोजन जेवु, तस्या ने है जल जेवु, 
भिकारी ने धन जेवु, लागे सुख-कारु है। 
हिवड़ा ना कोर जेवु, जीवन नी डोर जेवु, 
हरग नी पोर जेवु, देश प्यारु मारु है।

(3)

वालु-वालु प्यारु-प्यारु, रुड़ू ने रुपारुं हारु, 
गुण-ज्ञान नूं पटारु, देश एवु मारु है। 
राम जेवा अवतारी, कृष्ण जेवा करतारी, 
देव-साधु-सन्त भारी, पाक्या देश हारु हैं। 
जुदँ-जु, फूलँ वारु, मेटं-मेटं फल वारु, 
वन ने वगीसा वारु, जड़ी-बूटी वारु है।
केसर नी क्यारी वारु, चन्दन ना वाग वारु, 
ताजा जल-वायु वारु, देश प्यारु मारु है।

(4) 

हत्या ने आतंक थकी, लूट-पाट ने रोब थकी,
सेवा ना पाखंड थकी, कमाव्यु घणु पाप है। 
खोटं-खोटं काम करी, झुटी-झूटी वात करी, 
रुप्या थकी घोर भरी, बणी बेटा बाप है। 
देश नूं धन डकारी, करी ने खूब मक्कारी, 
बण्या धनवान भारी, कर्यु मोटु पाप है। 
जेने नती देश प्यारु, थाअे अेनु मोडु कारु 
एवा पापी देश हारु, जेरी कारा हाप हैं।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : अर्जुन लाल 'कुमुद' ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham