राज गरीब निवाज, जेण पहळाद उबारै।

राज गरीब निवाज, द्रोपद चीर वधारै।

राज गरीब निवाज, कुरंद सुदांमा कप्पै।

राज गरीब निवाज, धुव इवचळ कर थप्पै।

गज ग्राह विन्हे ही तारिया, रीझे खीझे लाछवर।

अजमाल चरण वंदण करै, धन तौ लीला चक्रधर॥

स्रोत
  • पोथी : गज उद्धार ,
  • सिरजक : महाराजा अजीतसिंह ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध-संस्थान चौपासनी, जोधपुर।