बैठी कांम बांम सम सुन्दर साल तरै,

पहिरै अरुन चीर आंगि पीत पगिनी।

सखी कर ताकै पर निज कर (राखै) बाल,

चलत राल चाल हाल अनुरागिनी।

कहै सिरदार तन कोमल कमल सम,

संपूरन रि पि नि सभागिनि।

राग सिरी नाम ताकी मालसरी रागनी॥

स्रोत
  • पोथी : सुर-तरंग ,
  • सिरजक : सरदार सिंह ,
  • संपादक : डी.बी. क्षीरसागर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम