लंका लिय सा नवे ग्रह छोडण, नाथण अहि वह नामे।
रामण तणा दसै सिर छेदे, श्री रंगे श्रीरामे।
केसवे कृसने कल्याणे, कंस मारणे क्रपाले।
वेय उधारण वामणे विसने, बिठूले वनमाले।
सामल ब्रने पीत सिणगारे, अहि नाथणे अपारे।
‘आसा’ सामि बलाक्रम अद्भुत, अबंर धर आधारे॥