फेरूं थारी याद आयगी बेबखत

उणमणो व्हैग्यो नीम रो दरख़त

याद री पुड़तां उघड़गी

उदासी

सांकळ जड़गी

नैणां मै थारी छिब

होळै होळै उतरगी

अबोली सी व्हैगी म्हारी मनगत

सूतोड़ी पीड़ा जागी जायगी

पुराणी बातां

हरियागी फेरूं

हेत री

हुळसती

बेलां फळायगी

कथीजण में किया आवै

मांयळी पीड़ अकथ

फेरूं थारी याद

आयगी बेबखत!

नीं गाईजी ओळ्यूं

आंखड़ली अर बकावा

नीं दिरीजी सीख

इयां इण किणी एक दिन

ऊभा हुआ

अर व्हीर हुयग्या

देस छोड़ परदेसां

लारै छूटग्या

गांव, गली गवाड़

अलख आंतरै

मोटरगाड़ी एक

लियां बगै ही अगाड़ी म्हां नै

पूठै छूटग्या कमठाणा कीरत रा

काळजै दबी ढ़की घिरणा

अर हिवड़ै ऊझलतो हेत

नीं दीनां किणी आडा हाथ

नीं सुणीज्यो ढ़बो एक’र किणी मूंडै

रोटी रै टूकड़ै लारै

आवै जियां ऊंदरा

कुतरण तांणी

कितनी तांणी

कितनी दूर आयग्या

निसर परा म्हैं।

फुर जावांला पाछा

किणी दिन आया जियां ही

सुरजी कोनी म्हे

जिण नै चाही जै लो

पूरमपूरो आभो

छिप जावण तांणी।

स्रोत
  • सिरजक : कृष्ण कल्पित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी