या कविता कठै सूं आई ?

सूना मन को कोई कोणो

जद आवाज लगाई

या कविता बठै सूं आई।

हूंस हरखतो तन मन जद

दरपण सूं बातां दोहराई

या कविता बठै सूं आई।

मन को गैरो चितंण

जद भाव गढ्यौ चेतन- सो

चेतनता की बीं गैराई सूं

कविता नूवीं निकळ कर आई।

फुलड़ा जद बागां में खिलग्या

झूला जद उपवन में पड़ग्या

खेतां में फसलां लहराई

या कविता बठै सूं आई।

हरियाळौ जद सावण आयो

सतरंगी फागण सरसायो

धरती को कण-कण हरसायो

या कविता बठै सूं आई।

भात-भांत का अनुभव-भाव

जद गैराई में गोता खाया

अनुभव-भाव-अनुभावां सूं

कविता को संसार सजाया

या कविता बठै सूं आई।

स्रोत
  • पोथी : सरद पुन्यूं को चांद ,
  • सिरजक : अभिलाषा पारीक ,
  • प्रकाशक : कलासन प्रकाशन ,
  • संस्करण : Prtham