मने घणौ नकै सतावौ

मनै एटलो के दबावौ

के मुँ उतलो मारी नै तमारै मातै सडी जाऊँगा

तमने विज्ञान नो नियम खबर नती?

के कई सीज़ ने जेटली दबाव

एणामें उत्पलावक बल वदी जाय।

एटले कूँ हूँ के आटला दाडा घणा दब्या

अवे अमैं दबवा वारा नती।

सहन करवानी सीमा रै है।

जई वगत नदी कांटो सौडी दै

तो नदी जोती नती लीली लेराती हरा

नती जोती मनक

कै नती सपं

कै रौकडं

ईतो सबनै ताणी लई जाय है।

मारा देश ना मोटा मोटा नेता कै वैपारी

हमजी ज़ौ

जनता नु बांद टूटवा वारू है।

घणी दबणी

अवै नै दबैगा।

जनता जागी गई है।

ज्ञान ना बै अक्षर हिकी गई है।

तमारी भुँडाई औरकी गई है।

अवै बकाववु बंद करी दौ।

ने तौ तमने भाजी नै भाव ने पूसैगा

एवु नै थाय

कै कालै तमै

पुंसडु दबावी नै फरता फरोगा।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : देवी लाल जानी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण