जल्लाद पाणी रा जाळ में,

लुटती मछल्यां आज री!

खूंट्यां पर टंकग्या है-

लैरां अर मछल्यां रा संबंध!

तार-तार होती-

जनम-जनम री प्रीत

आज रा बगत री सौगात, आज री रीत!

टूटती भरोसा री दिवारां

मौसम कियां बदळैगो!

सांसा पर भारी अणछायी हवा

कठैई नीं दीखै इणरो ओठकणो

माथो धूळ में गाडबा सूं

आंधी रो सामनो नीं होवै

रगत सूं तिलक करणिया

पगां में बिछग्या

मौसम कियां बदळैगो!

बडा-बडा रूंखड़ो, डाळ्यां अर पत्ता

सगळा आदी होयग्या-

ठोकरा में लोटबा का

होठां पर ओढी चुप्यां

सारा समझदार?

मौसम कियां बदळैगो!

बंद खिड़क्यां अर दरवाजा मांय

सब जणां डर्‌या-दुबक्या

इण आस में मर-मर सांस ले रैया है

कोई आवैलो सवारै

सूरज बण उजाळा रै सागै?

कद तक चालैगी जोर जबरस्ती?

पत्ता जियां हर जुबान

रजामंदी में हिलती-डुलती

मौसम कियां बदळैगो!

कूख में पळती कच्ची कळ्यां नैं

तैस-नैस करबा में लाग्या है-

आज रा जन्मदाता

तमाशो देखतो, चुपचाप विधाता

धिक्कार है इण बगत नैं

जननी अर जनमभोम,

दोन्यूं उजाड़ रैया है

मौसम कियां बदळैगो!

पाणी री ‌अेक-अेक बूंद

जरूरी है जिंदा रैवण तांईं

बे-सबर्‌यो

उळीच र्‌यो है रात-दन

धरती नैं फोड़’र

ठेठ पाताळ तक पूगग्यो

इणरा ईज बोया कांटा है

ज्यो धशूळ ज्यूं गळा तक चुक्या है

मौसम कियां बदळैगी!

होठां पे नाचती मुळकती

बारली मांयली हंसी अबै

कठैई नीं मिलै देखबा नैं!

मुट्ठयां में जंगळ नै कस-कस’र

घणा जणां नस-नस तोड़बा में लाग र्‌या है

फूल खिलबा री आस लियां

मौसम मियां बदळैगो!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : कमलाकान्त शर्मा ‘कमल’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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