सदयवच्छ प्रभ पूछइ इसिउं,

कहि कामिणि ते पाटण किसिउं।

स्वामि, सहारइ आपूं छेक,

लागइ दव दीहाडउ एक॥

जिणि पाटणि पोढा प्रासाद,

मेरु-शिखर-सिउं वहइ विवाद।

गरूउ गढ ऊंचा आवास,

किरि अहिणव दीसइ कैलास॥

मांहि महेस विष्णु नइ ब्रह्म,

सहू समाचरइ कुलोचित धर्म।

दिनकर भगति-तणउ अति भाव,

अधिकउ परमेसरी प्रभाव॥

बावन वीर वसइं तिहां वासि,

पूजइ जिनवर फळीइं आसि।

जिनशासन गाढउं गहगहइ,

जीवदया देखी मन रहइ॥

जे जोगिणि चउसठिनूं गाम,

चउरासी चेटकनूं तिहि ठाम।

व्यंतर भूत पिशाच नइ प्रेत,

साचउ साकिणि-तणउ संकेत॥

गणपति क्षेत्रपाळनी ख्याति,

दिवस पाहिइं रुडेरी राति।

ठामि-ठामि मंडळ मंडाइ,

ठामि-ठामि नित गुणिआ गाइ॥

ठामि-ठामि ढोणा ढोईइं,

ठामि-ठामि जोणा जोईंइ।

सातइ वसण सांवळीइ जोउ,

मांहि घणा छइं-छइं माणस तेउ॥

इकि लीलां लखिमी लइ जाइ,

भोळा भमइ सा विकाइ।

मणा कामण मोहण-तणी,

वरतइ धूरत-विद्या घणी॥

वसइ वासि क्षत्रीसइं कुळी,

मांहि चुहु मुडधा नइ मंडळी।

चउरासी सूरा सामंत,

च्यारि महाधर मंत्रि अनंत॥

चउरासी चुहटानी जुगति,

वरणावरण तणी बहु विगति।

उत्तम मध्यम लोक अपार,

भामा भला लाभइ पार॥

करइ राज सालिवाहण राउ,

वइरी तणउ विधंसइ ठाउ।

अऊठ पीठ पहिलूं पहिठाण,

सामीय आलि-तणूं अहिठाण॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : भीम ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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