धरती रा इण खूणै सूं

उण खूणै तांई

जठै सूरज री सब सूं पैली निजर पड़ै

या सब सूं लारै आथमै

मिनख री जरूरत, मुस्किल अेक है।

वो यूं ही मरै-जीवै

जियां म्हैं।

समंदर रै इण पार सूं उण पार।

मिनख अदीठ सूं यूं ही डरै,

जियां म्हैं

रोटी अर क्रांति री लड़ाई जबरन जुध रै खिलाफ

वै यूं ही लडै जियां म्हैं

अठै सूं उठै तांई

हर मां री सोच, टाबर री हंसी,

घर सुपनो अेक ही है

आंसू रो खार, हंसी रो ठसको,

मुळक आखै मुलक री अेक है।

राजी होय'र वो यूं गीत गावै, जियां हैं।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : शिवदान सिंह जोलावास ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham