जिण दिन

थारा होठ

मुळकणा बंद व्है जावैला

बालपणै रा किणी साथीड़ा

या आम आदमी सूं मिलती बगत

जिण दिन

गूंथण लागैला थारो दिमाग

छोटा-मोटा साजिसां रा जाळा

सीधा-सादा मिनखां रै खिलाफ

जिण दिन

थारो जीव बळण

अर काळजो कळपण लागैला

देख'र कै

कीकर व्हैगी

लकीर बडी दूजां री

अर धूं जुगत में जुट जावैला

हर हाल में उण रेख नै कारण री

याद राखजै

उण दिन

थारो खेल खतम हो जावैला

अर भी कै

अबै जावती जवारड़ा कर री है थनै

थारै पुरखां रै जमायोड़ी

आन, बान अर शान री जाजम।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : दशरथ कुमार सोलंकी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़