जग मांय पसरयोड़ो

अंधारो

जी रैयो

अंधारै री दुनिया मांय

बणग्यो जीवण रो दूजो नांव अंधारो

उजाळा सूं लागै डर

भागे है, लुकै है

करै है अंधारै री आरती

उजाळे री बात सूं

नीं कोई लगाव

अंधारो व्हालो होयग्यो है

उजाळो होयग्यो परायो।

आवो! नूतां उजाळे नैं

करां मांय-बारै उजास

दुनिया मैं दिखावां

उजाळे रो मारग

आवो! करां

नेन्ही बाती रो दिवलो।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हुसैनी वोहरा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham